क्या कुछ और भी है?

क्या कुछ और भी है?

◇और हक़ीक़त यह है कि हमने इन्सान को पैदा किया है, उसके दिल में उभरने वाले वसवसों तक को हम जानते हैं और हम उसकी गर्दन की रग से भी ज़्यादा उससे क़रीब हैं।

◇उस वक़्त भी जब आमाल को लिखने वाले दो फ़रिश्ते लिख रहे होते हैं, एक दायीं ओर और दूसरा बायीं ओर बैठा होता है।

◇ इन्सान कोई लफ़्ज़ ज़बान से निकाल नहीं पाता मगर उस पर एक निगराँ मुक़र्रर होता है, हर वक़्त (लिखने के लिये) तैयार।

◇और मौत की सख़्ती सचमुच आने ही वाली है। (ऐ इन्सान!) यह वह चीज़ है जिससे तू बिदकता था।

◇और सूर फूंका जाने वाला है, यह वह दिन होगा जिससे डराया जाता था।

◇और हर शख़्स इस तरह आयेगा कि उसके साथ (दो फरिश्ते होंगे) एक हाँकने वाला होगा और एक गवाही देने वाला।

◇(ऐ इन्सान!) हक़ीक़त यह है कि तू इस वाक़िए से गफ़लत में पड़ा हुआ था, अब हमने तुझसे वह पर्दा हटा दिया है जो तुझ पर पड़ा हुआ था, चुनाँचे आज तेरी निगाह ख़ूब तेज़ हो गई है।

◇और उसका साथी कहेगा कि,
“यह है वह (आमाल नामा) जो मेरे पास तैयार है।”

◇(हुक्म दिया जायेगा कि) तुम दोनों हर उस शख़्स को जहन्नम में डाल दो जो कट्टर काफ़िर(नाशुक्रा) और हक़ का पक्का दुश्मन था,

◇ख़ैर को रोकने वाला और हद से गुज़र जानेवाला था, शक में पड़ा हुआ था

◇जिसने अल्लाह के साथ किसी और को माबूद बना रखा था। लिहाज़ा अब तुम दोनों उसे सख़्त अ़ज़ाब में डाल दो।

◇उसका साथी (शैतान) कहेगा कि, “ऐ हमारे परवरदिगार! मैंने इसे गुमराह नहीं किया था, बल्कि यह ख़ुद ही परले दर्जे की गुमराही में पड़ा हुआ था।”

◇अल्लाह तअ़ाला कहेगा कि, “तुम मेरे सामने झगड़े न करो, मैं तुमको पहले ही बुरे अंजाम से ख़बरदार कर चुका था।”

◇मेरे यहाँ बात पलटी नहीं जाती और मैं बन्दों पर कोई ज़ुल्म करने वाला नहीं हूँ।

◇वो दिन जबकि हम जहन्नम से पूछेंगे, “क्या तू भर गई?”
और वो कहेगी,
“क्या कुछ और भी है?”

📖 सूरह क़ाफ़ 50:16-30

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